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भी हुई। श्रीमान् मुलतानमलजी के घर पर भी इसी तरह पगलियाँ हुए।
उसी दिन अष्टादशाभिषेक, ध्वज-दण्ड-कलशाभिषेकादि का तथा पूजा का कार्यक्रम हुआ। जलयात्रा का भव्य वरघोड़ा रथ-इन्द्रध्वज-हाथी-घोड़े-ऊँट तथा बैन्ड युक्त निकाला। रात को भावना के बाद वनोली भी निकाली गई।
(३) वैशाख सुद ६ गुरुवार दिनांक ११-५-८६ के दिन प्रातः शुभ लग्न मुहूर्त में जैनधर्मदिवाकर-तीर्थप्रभावक पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी म. सा. की शुभ निश्रा में मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ आदि जिनबिम्बों की, यक्ष-यक्षिणी आदि की तथा शिखरोपरि ध्वज-दण्ड-कलशारोहण की विधिपूर्वक महामंगलकारी प्रतिष्ठा-स्थापना हुई । बृहद् शान्तिस्नात्र विधिपूर्वक पढ़ाया गया तथा नौकारसी भी हुई। शाम को पूज्यपाद प्राचार्य म. सा. ने प्रतिष्ठा हेतु आउवा की तरफ विहार किया।
१० वैशाख सुद ७ शुक्रवार दिनांक १२-५-८९ के दिन रामाजी का गड़ा में प्रातः द्वारोद्घाटन, सत्तरह
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