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का महत्त्व' विषय पर प्रभाविक प्रवचन हुआ। इसी विषय पर पूज्य मुनिराज श्री जिनोत्तम विजयजी म. का भी सुन्दर प्रवचन हुआ। उसी दिन से तेरह दिन का जिनप्रतिष्ठा-महोत्सव प्रारम्भ हुआ। कुम्भ-स्थापना, अखण्ड दीपक, जवारारोपण तथा प्रभुपूजा एवं स्वामीवात्सल्य इत्यादिक कार्य हुए। प्रतिदिन व्याख्यान, पूजाप्रभावना, प्रांगी-रोशनी, स्वामीवात्सल्य तथा रात को भावना का कार्यक्रम चालू रहा ।
(२) चैत्र (वैशाख) वद ११ मंगलवार दिनांक २-५-८६ के दिन 'श्री सिद्धचक्र महापूजन' विधिपूर्वक पढ़ाई गई।
(३) चैत्र (वैशाख) वद १३ बुधवार दिनांक ३-५-८६ के दिन 'छप्पन दिगकुमारिका स्नात्र महोत्सव' का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
पूज्य साध्वीश्री दिव्यप्रज्ञा श्रीजी के श्री वर्द्धमान तप की ६१ वी अोली की पूर्णाहुति के प्रसंग पर विशेष बोली बोलकर लाभ लेने वाले श्रीमान् राजमलजी के घर पर पूज्यपाद आ. म. सा. ने चतुर्विध संघ के साथ पगलियाँ किये। वहाँ पर ज्ञानपूजन, प्रतिज्ञा एवं मंगल प्रवचन के बाद संघपूजा हुई।
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