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प्रभावना, नास्ता-स्वामीवात्सल्य, प्रांगी-रोशनी तथा रात को भावना का कार्यक्रम भी चालू रहा ।
(२) चैत्र (वैशाख) वद १४ के दिन पूजा तथा स्वामीवात्सल्य हुआ।
(३) चैत्र सुद १५ शुक्रवार दिनांक ३१-४-८६ के दिन जिनके सदुपदेश से श्रीसंघ ने यहाँ श्री जिनेन्द्र भक्ति महोत्सव का प्रारम्भ किया था, वे ही मरुधर-देशोद्धारक परम पूज्याचार्य भगवन्त श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वर जी म. सा. आदि खीमेल में पधारते हुए। उनका भव्य स्वागत श्रीसंघ ने अनेरे उत्साह के साथ किया । जिनमन्दिर के दर्शनादि के बाद पूज्यपाद प्रा. म. सा. का मंगल प्रवचन हुआ। उसी दिन 'श्री सिद्धचक्र महापूजन' विधिपूर्वक पढ़ाई गई।
१. श्रीमान् प्रेमचन्द चैनाजी पारेख, २. श्रीमान् मोहनराज चैनाजी राठौड़ और ३. श्रीमान् मिश्रीमल वोरीदासजी ।
इन तीनों के घर पर पूज्यपाद आचार्य म. सा. चतुर्विध संघ के साथ बैन्ड युक्त पधारे। वहाँ पर ज्ञानपूजन, मंगल प्रवचन तथा प्रतिज्ञा के पश्चाद् संघपूजा
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