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________________ देहरियों पर विधिपूर्वक नूतन ध्वजायें श्री संघ के अनेरे उत्साह पूर्वक चढ़ाने में आईं । बाद में वहाँ चलती हुई श्री उपधानतप की क्रिया के मण्डप में पूज्यपाद प्राचार्यदेव श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी म. सा. का 'श्री उपधान तप की महत्ता ' पर मंगल प्रभाविक प्रवचन हुआ । साथ में पूज्य आचार्य श्रीमद् विजय गुरगरत्न सूरिजी म. सा. का भी प्रवचन सुन्दर हुआ । दोपहर में पूजा - प्रभावना का कार्यक्रम रहा । बाद में पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वर जी म. सा. अपने परिवार समेत गुजराती कटला - जैन उपाश्रय में पधारे । * मागसर [ पौष ] वद ७ शुक्रवार दिनांक ३० - १२ ८८ के दिन प्रातः काल में पूज्यपाद प्राचार्यदेव श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी म. सा. श्रीमान् मांगीलालजी कोका के घर पर पधारे । मांगलिक सुनाने के बाद श्री नवलखाजी जिनमन्दिर दर्शनार्थ पधारे । इधर दोनों आचार्य महाराज का पुनः संमिलन हुआ । उपधानवाही भाई-बहिनों को मांगलिक सुनाकर पू. प्रा. श्रीमद् विजय गुणरत्न सूरिजी म. ( १२ )
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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