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________________ (१७) श्रावक सदैव धर्मध्यान और शुक्लध्यान में मग्न-लीन रहे तथा आर्तध्यान और रौद्रध्यान को त्यजे । (१८) श्रावक अहर्निश विनय-विवेकवन्त रहे, सद्गुणानुरागी बने, सद्वर्तनशील रहे और सदाचारी बने। (१६) श्रावक प्रतिदिन अपनी आत्मा को समभाव में रखे, विषमभाव में कदापि नहीं ले जावे । (२०) श्रावक अहर्निश की हुई गलती-भूल का पश्चाताप तथा प्रायश्चित्त द्वारा शुद्धीकरण अवश्यमेव करे। (२१) श्रावक प्रतिदिन विश्व के सभी जीवों को मन, वचन और काया से खमावे और खमे । (२२) श्रावक अहर्निश कम खावे, गम खावे और नम जावे तथा अपनी आत्मा को समभाव में रखे, विषम भाव में नहीं ले जावे । (२३) श्रावक अहर्निश शासनरक्षा-धर्मरक्षा के प्रत्येक कार्य में अपना सर्वस्व भोग देकर भी शासन कीधर्म की अवश्यमेव रक्षा करे । ( १४७ )
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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