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(२४) श्रावक प्रतिदिन शासन-प्रभावना के महत् कार्यों में अनुकम्पा-दान इत्यादि की भी उपेक्षा न करे अर्थात् न भूले ।
(२५) श्रावक-जीवन संयम-जीवन की योग्य भूमिका को प्राप्त करने में हेतु है। इसलिये इस जीवन में संयम-दीक्षा को प्राप्ति हेतु अहर्निश प्रयत्नशील रहना चाहिये। क्योंकि मनुष्य-भव यानी मनुष्य-जीवन ही मुक्ति की साधना का अद्वितीय एक महान् स्थल है तथा मनुष्य-जीवन में ही मोक्ष की साधना संयमजीवन में सुलभ है। अतः उसके द्वारा भव्य जीव मोक्षसुख को अवश्य ही प्राप्त हों।
श्रोवीर सं. २५१५ विक्रम सं. २०४५ जेठ [आषाढ़] वद-१३
शनिवार दिनांक १-७-८६
लेखक विजय सुशील सूरि ___ जैन धर्मशाला,
श्री वरकारणा तीर्थ राजस्थान [मारवाड़]
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