SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११ ) श्रावक अहर्निश अहिंसा को अपनावे, सत्य बोले, चोरी नहीं करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे तथा परिग्रह का त्याग करे | उपयोगी जो होवे उनमें भी मोह, मूर्छा और सक्ति भाव न रखे । ( १२ ) श्रावक अहर्निश सबके साथ मैत्री भाव रखे और किसी के साथ भी वैर - विरोध तथा क्लेशकंकाश आदि न करे । (१३) श्रावक प्रतिदिनदेव-दर्शन-पूजन, गुरुवन्दन जिनवाणी - श्रवण, व्रत, पच्चक्खाण, तप, जप, सामायिक एवं प्रतिक्रमण इत्यादि अवश्य ही करे । (१४) श्रावक अहर्निश दान, शील, तप और भाव इन चारों प्रकार के धर्म को स्वीकार कर उनका परिपालन अवश्यमेव करे । (१५) श्रावक प्रतिदिन प्रभु की आज्ञा का पालन त्रिकरण योग से अवश्य ही करे । आज्ञा का उल्लंघन नहीं करे । (१६) श्रावक अहर्निश सुदेव, सुगुरु और सुधर्म के प्रति अपने अन्तःकरणपूर्वक सम्पूर्णपने वफादार रहे। ( १४६ )
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy