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अनुसार अपने सार्मिक बन्धु की भोजनादिक से भक्ति करे तथा स्वयं निराशंस भाव से रस की आसक्तिलोलुपता बिना भोजन करे ।
(८) फिर अपने और अपने परिवार के भरणपोषण के लिये धनोपार्जन न्याय और नीति के परिपालन पूर्वक करे।
(६) शाम को सूर्यास्त के दो घड़ी पूर्व (यानी ४८ मिनट) आहार-पानो से निवृत्त हो जावे तथा जिनमन्दिर में दर्शनादि करके चौविहार इत्यादि का पच्चक्खाण करे।
(१०) उसके पश्चाद् पूज्य गुरु महाराज का योग हो तो उनकी निश्रा में जाकर देवसिक प्रतिक्रमण करे । पक्खी हो तो पक्खी, चौमासी हो तो चौमासी तथा संवच्छरी हो तो संवच्छरी प्रतिक्रमण करे। पूज्य गुरु महाराज का योग न हो तो भी स्वयमेव प्रतिक्रमण करे । उससे वंचित नहीं रहे ।
(११) शाम का प्रतिक्रमण करने के बाद में स्वाध्यायादि करे। संथारा पोरसी सुने तथा अनित्यादि भावना से अपने मन को भावित करे एवं श्री नमस्कार महामन्त्र का स्मरण कर शयन करे ।
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