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( १४० ) ही तू अहर्निश त्रिकरण योगे अाराधना-उपासनादि कर और वीतराग बनकर, तथा अष्टकर्म रहित होकर मुक्तिधाम में पहुँच कर सादि अनन्तस्थिति प्राप्त कर एवं सदा शाश्वत सुख का भोग कर । यही शुभकामना ।
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प्रासो सुद-१५
शनिवार दिनांक २६-१०-६६
विजय सुशीलसूरि
कोसेलाव राजस्थान
॥ शुभं भवतु श्रीसंघस्य ।।