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[७] प्रभु की मूत्ति भव्यात्मा के भवभ्रमण को सदन्तर बन्द कराती है।
[८] प्रभु की मूत्ति भव्यात्मा के प्रभ्यन्तर शत्रु अष्टकर्मों के सदन्तर विध्वंस-विनाश करती है ।
[६] प्रभु की मूत्ति-प्रात्मा के दान, शील, तप और शुभ भावना आदि में अहर्निश अभिवृद्धि कराती है ।
[ १० ] प्रभु की मूति-प्रात्मा के अहिंसक बनाती है, तथा वीतराग प्रभु की मूत्ति वीतराग बनाती है।
इसलिए हे मानव ! तू पूर्णता का उपासक है। पूर्ण बनने के लिए तो पूर्णता का अनुपम प्रादर्श, पूर्ण करने वाली सारे विश्वभर में श्री वीतराग विभु की जिनेश्वर भगवान की प्राणप्रतिष्ठा [अंजनशलाका] की हुई एक ही अलौकिक-अद्वितीय-अद्भुत-अनुपम भव्य मूर्ति है। उसकी