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प्रभु की प्रतिमा मात्र प्रतिमा ही नहीं, साक्षात् परमात्मा है ॥ ६ ॥
श्रीवीतराग प्रभु की मूत्ति-प्रतिमा प्रवन्दनीय नहीं, किन्तु वन्दनीय ही है। प्रस्तुत्य नहीं किन्तु स्तुत्य ही है । अपूज्य नहीं किन्तु पूजनीय ही है ।। १०॥ श्रीवीर सं. २५२३
- लेखक - विक्रम सं. २०५३ प्राचार्य विजय सुशीलसूरि मागशर [कात्तिक]
- स्थ ल - वद-२ बुधवार
श्री प्रोसवाल जैनसंघ
उपाश्रय २७-११-६६
कोसेलाव, राजस्थान
[मारवाड़]
दिनाङ्क
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॥ जैनं जयति शासनम् ॥