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पट्ट-चित्र-छवि इत्यादि अहर्निश दर्शनीय, वन्दनीय, पूजनीयनमस्करणीय एवं स्मरणीय है ।। ४ ।।
श्री वीतराग-जिनेश्वर भगवान की पंचकल्याणकयुक्त विधिपूर्वक की हुई मूत्ति-प्रतिमा केवल पत्थर-पाषाण नहीं है, किन्तु साक्षात् जिनेश्वर के समान प्रभु है-परमेश्वर हैअरिहन्त परमात्मा है-सिद्ध भगवान है ॥ ५ ।।
श्री वीतरागविभु की मूत्ति की भावना काल्पनिक नहीं है, किन्तु मानव प्रकृति के साथ ही संकलायेली प्रकृति जितनी ही सनातन अनादिकाल की एक अनुपम-अद्वितीयमलौकिक चीज-वस्तु है ।। ६ ।।
अनादिकालीन इस विश्व में जितनी सूर्य, चन्द्र और तारा को दिव्यज्योति है, इतनी ही सनातन श्रीवीतरागजिनेश्वर भगवान की मूत्ति-प्रतिमा की अलौकिक भावना है। जो भूतकाल में यही भावना थी, वर्तमान काल में है, और भविष्य काल में भी अवश्य ही रहेगी ॥ ७ ॥
प्रभु की मूत्ति मात्र मूर्ति ही नहीं, मूर्तमान प्रभु ही है ॥ ८ ॥