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* प्रभु-स्तुति *H
प्रशमरसनिमग्नं दृष्टियुग्मं प्रसन्नम् । वदन-कमलमङ्ग, कामिनीसङ्गशून्यम् ।। करयुगमपियत्ते शस्त्रसम्बन्धवन्द्यम् । तदसि जगति देवो, वीतरागस्त्वमेव ।। १॥
अर्थ-प्रशान्त नयन हो, प्रसन्न वदन (मुख) हो, सदा हो स्त्रो के संग से शून्य हो, हाथ में न कोई शस्त्र हो, न कोई अस्त्र हो, वास्तव में देवाधिदेव ऐसे ही हो सकते हैं।
विश्व में ऐसे देवाधिदेव प्रभो ! पाप ही हैं, वीतराग भी पाप हो हैं, परमात्मा भी पाप ही हैं और परमेश्वर भी आप ही हैं ।। १ ।।