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* प्रभु-प्रार्थना *
कर्ता-पूज्याचार्य श्रीमद् विजय सुशील सूरिजी म. सा. पाया प्रभु के दरबार, कीजे भवसिन्धु पार । विश्व में तू ही प्राधार, मुझे तार-तार-तार ॥ १ ॥ आत्मगुणों के भण्डार, तेरी महिमा अपार । देखा सुन्दर देवदारु, कोजे पार-पार-पार ।। २ ।। तेरी मूत्ति मनोहार, नहीं कोई विकार । निरंजन निराकार, वन्दू वार-वार-वार ।। ३ ।। मेरे हृदय के हार, और जीवन प्राधार । अष्टकर्म हरनार, तू ही सार-सार-सार ।। ४ ।। दक्ष-सुशील अणगार, किया जिनोत्तम जुहार । दे दो मोक्ष-सुख अपार, विनंती धार-धार-धार ॥ ५ ॥