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* प्रभु पार्श्व वन्दना *
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प्राचार्य श्री विजय सुशील सूरीश्वरजी म. सा. साहित्यसाधना के अनुपम साधक हैं । जप, तप, श्रनुष्ठान के अतिरिक्त समय में सर्वदा साहित्य-सृजन में लीन रहते हैं । आपकी शास्त्रीय विवेचन शैली प्रामाणिक एवं प्रभावोत्पादक है । कविता के क्षेत्र में रसानुसिक्त, अनुप्रासादि अलंकारों से सहज रूप से मुखरित प्रापकी रचनायें काव्यरसिकों के मन को मोहित कर लेती हैं ।
प्रस्तुत 'पार्श्व वन्दना' आपकी साहित्यिक कलम की एक झलक मात्र है ।
- सम्पादक
(१)
शमन किया गुणवन्त ।
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राग-द्व ेष अरु दम्भ का समता-सर- सरसिज
बने,
पार्श्वप्रभु जयवंत ।। १ ।।
दया धर्म दीपित श्रहो, दूरंदेश विचार | श्रमल - कमल सा खिल रहा, पार्श्वनाथ आचार ॥ २ ॥
गुण गरण गरणना में गुणी, गुञ्जित गौरव गान । गरिमा गाथा गुरुतरा, पार्श्व जिनेश्वर ज्ञान ।। ३ ।।