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________________ आध्यात्मिक प्रात्मबोध-गीत कर्ता-प्राचार्यदेव श्रीमद्विजय सुशील सूरीश्वरजी म.सा. मेरे प्रात्मा में भया प्रकाश, ज्ञानज्योति मुझे मिली है खास । ॥हर ॥ काल अनन्त रुला भवाटवी में, बँधा कर्म की पाश । क्रोध मान माया लोभ कषाये, हुअा मैं विश्व का दास । मेरे० ॥१॥ तन-धन कुटुम्बादि सब ही पर हैं, अन्य की प्राश निराश । जड़ पुद्गल को निज कर मैंने, किया सत्त्व विनाश । मेरे० ॥२॥ रोग-शोकादिक मुझे न देते, अंश मात्र भी त्रास । इस विश्व में कर्म ने मुझको, डाला गर्भावास । अस्थि-मांसमय अशुचि अंग में, हुआ मेरा ही वास । मेरे० ॥३॥ ममता दुःख थकी सन्ताप, उठा हुमा विश्वास । भेदज्ञान के शस्त्रधार से, काटा कर्म वह पाश । मेरे ॥४॥
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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