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cronmenmononnonmononsman । आध्यात्मिक आत्मबोध-गीत mmmmmmmmmonrorum
कर्ता-पूज्यपाद प्राचार्यदेव
श्रीमद् विजय सुशील सूरिजी म.सा. मैं चाहूँ मोक्षपुरी का सुख, जहाँ न है अंश मात्र दुःख ।
॥ टेक ॥ जहाँ न कोई भेदभाव है, न कोई भी असमान । फिर न कोई लघु-महान् है, सभी है प्रात्मा समान ।
मैं चाहूँ० ॥ १ ॥ जहाँ न कोई माता-पिता है, न कोई कुटुम्ब-कबीला । जहाँ न कोई शत्रु-मित्र है, न कोई रंग-रंगीला ।
मैं चाहूँ० ॥ २ ॥ जहाँ न होती लाड़ी और वाड़ी, तथा न होती कोई गाड़ी। जहाँ न होता कभी खाना-पीना, और न होता हँसना-रोना ।
मैं चाहूँ० ॥ ३ ॥ जहाँ न होती काया और माया, न होती धूप तथा छाया । जहाँ न जन्म-जरा-मरना, न होता जहाँ से हटना ।
मैं चाहूँ० ॥ ४ ॥