________________
( १२४ ) कियाऽर्पण शीश चरणों में,
झुकाया देह शरणों में । हृदय से होना नहीं न्यारा,
न भूलू देव-गुरुवर को ॥ ५ ।। भव भ्रमण मिटाना,
जन्म-मरण भी हटाना । प्रष्टकर्म को भगाना,
न भूलू देव-गुरुवर को ।। ६ ।। शिवपुरी पन्थ दिखाना,
शाश्वता सुख दिलाना। सुशील शिव नारी मिलाना,
न भूलू देव-गुरुवर को ।। ७ ॥ भवोभव जिन चरणों की,
मांगता हूँ भाव से सेवा । लेना है मुक्ति-मिष्ट मेवा,
न भूलू देव-गुरुवर को ॥ ८ ॥