________________
( १०८ ) सहस - सत्ताणु त्रेवीश सार ,
जिनवर-भवनतणो अधिकार । लांबां सौ जोजन विस्तार ,
पचास ऊँचां बहोतेर धार ॥ ५ ॥ एकसौ एशी बिंबप्रमाण ,
सभा सहित एक चैत्ये जाण । सो क्रोड बावन क्रोड समान ,
लाख चोराणु सहस चौपाल ॥ ६ ।। सातसें ऊपर साठ विशाल ,
सवि बिंब प्रणमुत्रण काल । सात क्रोड ने बहोतेर लाख ,
भवनपतिमां देवल भाख ।। ७ ।। एकसौ एशी बिंब प्रमाण ,
एक एक चैत्ये संख्या जाण । तेरसे क्रोड़ नेव्याशी क्रोड़ ,
साठ लाख वंदु कर जोड़ ।। ८ ।। बत्रीसे ने प्रोगणसाठ ,
तीर्छालोकमां चैत्यनो पाठ । त्रण लाख एकाणु हजार ,
त्रणसे वीश ते बिंब जुहार ।। ६ ।।