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________________ ( १०४ ) परमात्मा की यही प्रातःकाल की पूजा कही जाती है। जिनमन्दिर से बाहर निकलने के समय 'प्रावस्साहि' अवश्य कही जाती है। (२) मध्याह्न काल को प्रभु पूजा-मध्याह्न काल में भोजन के पूर्व श्रावक जयणापूर्वक परिमित जल से स्नान करे । स्नान करने के समय पूर्वदिशा के सम्मुख मुख रखकर स्नान करना चाहिए। जिस पट्टे पर बैठकर स्नान किया जाय, वह नालयुक्त और जमीन से ऊँचा ऐसा होना चाहिए कि जिससे जल बाहर निकल जाये, तथा किसी जीव को दुःख न होवे अर्थात् बाधा न पहुँचे । स्नान के पश्चात् स्वच्छ वस्त्र से अपने अंग-शरीर को साफ करना चाहिए। तथा स्नान वाले वस्त्र को बदलकर ऊनी कम्बल पहननी चाहिए। जब तक अपने पैर न सूख जाय, तब तक खड़े रहना चाहिए। और मन में जिनेश्वर भगवन्त का स्मरण करते रहें। बाद में पुरुष को पूजा के शुद्ध वस्त्र धोती और दुपट्टा-खेस दोनों ही पहनने के हैं, न कि लेंघा, चड्डी, रेशमी झब्बा प्रादि ।
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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