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( १०५ ) स्त्री को पूजा के योग्य तीन वस्त्र पहनने चाहिए। तदुपरान्त रुमाल रखने का। पूजाविधि में पुरुष स्त्री के वस्त्र न पहने और स्त्री पुरुष के वस्त्र न पहने ।
इस तरह प्रभु-पूजा के वस्त्र पहन कर अष्टप्रकार के पूजा के द्रव्य 'जल, चन्दन, पुष्प, धूप, अक्षत, फल, नैवेद्य और दीपक' इन प्रष्ट द्रव्यों से युक्त जिनमन्दिर में प्राकर विधिपूर्वक अष्ट द्रव्यों से अष्टप्रकारी पूजा प्रभु की करते हैं। द्रव्यपूजा और भावपूजा करके दोनों ही श्रावक-श्राविका पुण्योपार्जन करते हैं ।
यही मध्याह्न काल की पूजा कही जाती है। पूजा के समय सात प्रकार की शुद्धि होनी चाहिए-(१) मन की शुद्धि, (२) वचन की शुद्धि, (३) काया की शुद्धि, (४) वस्त्र की शुद्धि, (५) भूमि की शुद्धि, (६) पूजा के उपकरण, और (७) स्थिति । इन सातों की शुद्धि अवश्य होनी चाहिए।
(३) सन्ध्याकाल की पूजा-सूर्यास्त के दो घड़ी पूर्व भोजन और जल-पानी कार्य पूर्ण करके जिनमन्दिर आकर श्रावक दर्शन, नमस्कार, प्रदक्षिणा और स्तुति आदि करके धूप-दीप जलाता है।