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________________ ( १०३ ) जाने के लिए अपने पैर उठाता है, तब पूर्वदिशा में सूर्य का उदय हो जाता है । मार्ग में चलते हुए जीवों की रक्षा करते हुए तथा यथास्थान दस त्रिकों का सम्यग् पालन करने के साथ-साथ वह जिनमन्दिर में प्रवेश निस्सही' कहकर करे । तीन प्रदक्षिणा देकर परमात्मा की स्तुति करे । पुरुष प्रभु की दक्षिण बाजू में और स्त्री प्रभु की बायीं बाजू में खड़े होकर भगवान के दर्शन एवं स्तुतिप्रार्थना करे | भगवान से उत्कृष्ट ६० हाथ दूर या जघन्य से 8 हाथ दूर खड़े होकर दर्शन एवं स्तुति आदि की जाय । बाद में उत्तम प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों से जिनबिम्ब जिनमूर्ति - जिनप्रतिमा की वासक्षेप पूजा करे । उसके पश्चाद् धूपपूजा एवं दीपकपूजा करके चैत्यवन्दन करे | तत्पश्चाद् यथाशक्ति नवकारसी आदि या प्रायंबिल - उपवासादि का पच्चक्खाण ग्रहरण करे । १. पहली निस्सही कहकर घर-व्यापारादि सम्बन्धी समस्त चिन्ता को दूर करे। दूसरी निस्सही से जिनमन्दिर में जहाँ-जहाँ श्राशातना होती हो, वहाँ-वहाँ उसको देखकर उसकी शुद्धि करे । तथा तीसरी निस्सही कह करके मन-वचन-काया की एकाग्रता से शुद्धिपूर्वक स्तुति प्रार्थनादि करे ।
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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