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* कपटीश्राद्धः *
[ ८३ ]
कपटी निष्कृपः प्रारणी, पीडयञ्श्रमरणानपि । न लज्जते यथा श्राद्धो लघुक्षुल्लकविक्रयी ॥ ८३ ॥
पदच्छेदः - कपटी निष्कृपः प्राणी पीडयन् श्रमणान् अपि न लज्जते यथा श्राद्धः लघुक्षुल्लकविक्रयी ।
अन्वयः - कपटी निष्कृपः प्राणो श्रमरणान् अपि पीडयन् न लज्जते यथा लघुक्षुल्लकविक्रयी श्राद्धः ।
शब्दार्थ : - कपटी कपट वाला, निष्कृपः निर्दय, प्रारणी देहधारी, श्रमणान् = साधुनों को, पीडयन् - पीड़ा देता हुआ, न लज्जते नहीं लज्जित होता है । यथा = जैसे, लघुक्षुल्लकविक्रयी = छुटक वस्तुओं को बेचने वाला, श्राद्ध =
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श्रावक ।
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श्लोकार्थ :- कपटी और निर्दय प्राणी साधुयों को पीड़ा देते हुए भी लज्जित नहीं होता है । जैसे क्षुद्र और छोटी वस्तुनों को बेचने वाला श्रावक ।
संस्कृतानुवादः - कपटी निर्दय प्राणी साधून् पीडयन् नहि लज्जते लघुक्षुल्लकविक्रयी श्राद्ध इव ।। ८३ ।।
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