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________________ * लोभी * [ ८४ ] अर्थलुब्धः पूर्णकार्यो, विश्वस्तं प्राणिनं कुधीः । विभागिनं निहन्त्येव, चाणक्य इव पर्वतम् ॥ ८४ ॥ पदच्छेदः-अर्थलुब्धः पूर्णकार्यः विश्वस्तं प्राणिनं कुधीः विभागिनं निहन्ति एव चाणक्यः पर्वतम् इव । अन्वयः-चाणक्यः पर्वतम् इव अर्थलुब्धः पूर्णकार्यः कुधीः विश्वस्तं विभागिनं प्राणिनं निहन्ति एव । शब्दार्थः-चाणक्यः चारणक्य, पर्वतम् इव= पर्वत की तरह, अर्थलुब्धः अर्थ का लोभी, पूर्णकार्य:- जिसका कार्य पूर्ण हो चुका है, कुधीः=कुत्सित बुद्धिवाला मनुष्य, विश्वस्तं विश्वासी, विभागिनम् =भागीदार को, प्राणिनं= मानव को, निहन्त्येव मारता ही है । श्लोकार्थः-कुत्सित बुद्धि वाला, अर्थलोभी और जिसका कार्य पूर्ण हो चुका है ऐसा व्यक्ति अपने विश्वासी भागीदार को भी मार देता है जैसे चाणक्य ने पर्वत को मारा। संस्कृतानुवादः-चाणक्यः पर्वतमिवार्थलुब्धः पूर्णकार्यः कुधीः मानवः विश्वस्तं विभागिनं प्राणिनं निहन्त्येव ॥ ८४ ।। ( ८५ )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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