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________________ * निकाचितकर्म * [ ७७ ] अपि यत्नशतै ति, क्षयं कर्म निकाचितम् । यथा श्रेणिकभूपेन, नरकायुरुपाजितम् ।। ७७ ॥ पदच्छेदः-अपि यत्नशतैः न एति क्षयं कर्म निकाचितम्, यथा श्रेणिकभूपेन नरकायुः उपार्जितम् । अन्वयः-यत्नशतैः अपि निकाचितम् कर्म क्षयं न एति यथा श्रेणिकभूपेन नरकायुः उपार्जितम् । शब्दार्थः-यत्नशतैः सैकड़ों प्रयत्नों से, अपि=भी, निकाचितम् = निकाचित, कर्म कर्म, क्षयं नाश, नैति= नहीं होता है। यथा जैसे, श्रेरिणकभूपेन=श्रेणिक राजा के द्वारा, नरकायुः नरक का आयु, उपाजितम् = उपार्जित किया। श्लोकार्थः-सैकड़ों प्रयत्न करने पर भी निकाचित कर्म का नाश नहीं होता है। जैसे श्रेणिक राजा द्वारा उपाजित नरकायुष्य । संस्कृतानुवादः-प्रयत्नशतैरपि निकाचितं कर्म नाशं न गच्छति । यथा राज्ञा श्रेणिकेन नरकायुरुपाजितम् ॥ ७७ ।। ( ७८ )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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