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________________ [ ६३ ] लोभं त्यजेदमर्याद, तन्मर्यादां विवेकवान् । कुर्याद् येनातिलोभेन सिद्धिरन्धकतां गता ॥ ६३ ॥ पदच्छेदः-लोभं त्यजेत् अमर्यादं तत् मर्यादां विवेकवान् कुर्याद् येन अतिलोभेन सिद्धिः अन्धकतां गता। अन्वयः-अमर्यादं लोभं त्यजेत् विवेकवान् तन्मल्दां कुर्यात् येन अतिलोभेन सिद्धि : अन्धकतां गता। ___ शब्दार्थः-अमर्यादं मर्यादा रहित, लोभं लोभ को, त्यजेत् छोड़ना चाहिए, विवेकवान् विवेकीमानव, तन्मर्यादां उस मर्यादा को, कुर्यात् करे, येन=जिससे, अतिलोभेन अतिलोभ से, सिद्धिः सिद्धि, अन्धकतां= निष्फलता को, गता प्राप्त हुई। श्लोकार्थः-मर्यादातीत लोभ को छोड़ देना चाहिए। विवेकी मनुष्य उसकी मर्यादा निश्चित करे, कारण अतिलोभ के वश हो सिद्धि निष्फलता को प्राप्त हुई। संस्कृतानुवादः-अमर्यादं लोभं परित्यजेत् विवेकवान् जनः तन्मर्यादां कुर्यात् । येनातिलोभेन सिद्धिः अन्धकतां गता ।। ६३ ।।
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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