SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ३८ ] क्रोधोद्धता मत्सरियो, मत्स्या इव परस्परम् । नरकं यान्ति निघ्नन्तः, सत्त्वान् रामसुभूम वत् ॥३८॥ पदच्छेदः-क्रोधोद्धताः मत्सरिणः मत्स्या इव परस्परम् नरकं यान्ति निघ्नन्तः सत्त्वान् रामसुभूमवत् । अन्वयः-क्रोधोद्धताः मत्सरिणः मत्स्या इव परस्परं सत्त्वान् निघ्नन्तः रामसुभूमवत् नरकं यान्ति । शब्दार्थ:-क्रोधेन उद्धताः क्रोधोद्धताः क्रोध से उद्धत, मत्सरिणः=ईर्ष्यालुजन, मत्स्या इव मछलियों की तरह, परस्परम् =अन्योन्य, एक-दूसरे को, सत्त्वान् = जीवों को, निघ्नन्तः=मारते हुए, रामसुभूमवत् रामसुभूम की तरह, नरकं नरक को, यान्ति जाते हैं । श्लोकार्थः-अत्यन्त क्रोधी और ईर्ष्यालुजन मछलियों की तरह परस्पर जीवों को मारते हुए रामसुभूम की तरह नरक में जाते हैं। . संस्कृतानुवादः-कोपोद्धताः मत्सरिणो जनाः मत्स्या इव अन्योऽन्यं जीवान् हिंसन्तः रामसुभूमवत् नरकं गच्छन्ति ॥ ३८ ॥
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy