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________________ [ २६ ] दद्याद् भागवती-भक्तिः, पदवीं परमेष्ठिनः । एकाऽपि भावतः क्लुप्ता, कूणिक्षोणिपतेरिव ॥ २६ ॥ पदच्छेदः-दद्याद् भागवती भक्तिः पदवीं परमेष्ठिनः एका अपि भावतः क्लुप्ता कूरिणक्षोणिपतेः इव । अन्वयः-कूणिक्षोणिपतेः इव एका अपि भावतः भागवती भक्तिः परमेष्ठिनः पदवीं दद्यात् ।। शब्दार्थः-कूरिपक्षोरिणपतेः इव कूणिराजा की तरह, एका अपि=एक भी, भावतः=भाव से, क्लुप्ता की गयी, भागवती भगवान सम्बन्धी, भक्तिः पूज्यों के प्रति अनुराग, परमेष्ठिनः=परमेष्ठी की, पदवी-पदवी को, दद्यात् =देवे । श्लोकार्थः-कूणिराजा की तरह भाव से की गयी एक भी भागवती-भक्ति परमेष्ठिपद प्रदान करे । संस्कृतानुवादः-कूणिक्षोणिपतेरिव एकापि भावतः रचिता भागवती-भक्तिः परमेष्ठिनः पदं दद्यात् ॥२६ ॥
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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