SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * वैयावृत्यम् * [ २४ ] यथाशक्ति ग्लानसाधु-वैयावृत्त्यादिभक्तितः । श्रमरणी पुष्पचूलेव, लभते परमं पदम् ॥ २४ ॥ पदच्छेदः-यथाशक्ति ग्लानसाधुवैयावृत्त्यादि भक्तितः श्रमणी पुष्पचूला इव परमं पदं लभते । अन्वयः-मानवः भक्तितः यथाशक्ति ग्लानसाधुवैयावृत्त्यादि श्रमणी पुष्पचूला इव परमं पदं लभते । शब्दार्थः-मानवः मनुष्य, भक्तितः भक्ति से, यथाशक्ति शक्ति के अनुसार, ग्लानाश्च ते साधवस्तेषां वैयावृत्त्यं आदिर्यस्य तत् ग्लानसाधुवैयावृत्त्यादि पीड़ित साधुओं की सेवा करने से, श्रमरणी=साध्वी, पुष्पचूला इव पुष्पचूला की तरह, परमं पदं मुक्ति को, लभते पाता है । श्लोकार्थः-मानव भक्तिपूर्वक दुःख से पीड़ित साधुओं की शक्ति के अनुसार सेवा करने से साध्वी पुष्पचूला की तरह परम पद (मोक्ष) को प्राप्त करता है । संस्कृतानुवादः-मानवो भक्तितः यथाशक्ति ग्लानसाधुसेवादिकरणेन श्रमणो पुष्पचूलेव परमं पदं (मोक्षं) प्राप्नोति ।। २४ ॥ ( २५ )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy