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________________ - [२१] अर्हतः प्रतिमामाँ , पूजयन् परमार्हतः । कुमारपालक्ष्मापाल इव सम्पदमश्नुते ॥ २१ ॥ पदच्छेदः-अर्हतः प्रतिमाम् अाम् पूजयन् परमार्हतः कुमारपालक्ष्मापालः इव सम्पदम् प्रश्नुते । अन्वयः-परमार्हतः अाम् अर्हतः प्रतिमां पूजयन् कुमारपालक्ष्मापालः इव सम्पदम् अश्नुते । शब्दार्थः-परमश्चासौ अर्हतः परमार्हतः श्री जिनेश्वर भगवान में अत्यन्त श्रद्धा रखने वाला, पर्चयितुं योग्या तां अाम्=पूजने के योग्य, अर्हतः श्री जिनेश्वर भगवान की, प्रतिमां मूर्ति को, पूजयन्=पूजा करता हुआ, कुमारपालक्ष्मापालः इव कुमारपाल राजा की तरह, सम्पदम् सम्पत्ति को, अश्नुते भोगता है। __ श्लोकार्थः-श्री जिनेश्वर भगवान में परम श्रद्धा रखने वाला भक्त पूजनीय श्री जिनेश्वर भगवान की प्रतिमा-मूर्ति को पूजता हुमा कुमारपाल राजा की तरह सब तरह की सम्पत्तियों को भोगता है । संस्कृतानुवादः-अर्हद्धर्मानुयायी पूज्यां श्रीमतः अर्हतः मूत्ति पूजयन् परमार्हतः कुमारपालभूपालरिव सम्पदं भुङ्क्ते ।। २१ ॥ ( २२ )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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