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________________ * वधः * [ ११८ ] प्रभुत्वमदमत्तः सन्, कर्णनक्रवधादिकम् । कुर्वनिन्द्रियवैकल्य-दुःखं लोष्टवदाप्नुयात् ॥ ११८ ॥ पदच्छेदः-प्रभुत्वमदमत्तः सन् कर्णनक्रवधादिकम् कुर्वन् मानवः इन्द्रियवैकल्य-दुःखं लोष्टवद् प्राप्नुयात् । अन्वयः-मानवः प्रभुत्वमदमत्तः सन् कर्णनक्रवधादिकम् कुर्वन् इन्द्रियवैकल्यदुःखं लोष्टवद् प्राप्नुयात् । शब्दार्थः-प्रभुत्वमदमत्तः सन् उच्च पद के मद से मत्त होता हुआ, कर्णनकवधादिकम् कुर्वन् =कर्ण और मगर आदि का वध करता हुआ, मानवः=मनुष्य, इन्द्रियवैकल्यदुःखं=इन्द्रियों की विकलता के दुःख को, लोष्टवद्=लोष्ट की तरह, आप्नुयात् =प्राप्त करे। श्लोकार्थः-उच्चपद के गर्व से मत्त होता हुआ और कर्ण तथा मगर आदि का वध करता हुआ प्राणी इन्द्रियों की विकलता के दुःख को लोष्ट की तरह प्राप्त करे । ____संस्कृतानुवादः-प्रभुत्वगर्वमत्तः सन् कर्णनक्रवधादिकं कुर्वन् मानवः इन्द्रियवैकल्यदुःखं लोष्टवद् प्राप्नुयात् ॥ ११८ ।। ( ११६ ) .
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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