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________________ * दानम् [ ६४ ] भावपात्ररहितं फलप्रदं, नैव दानमुदितं मनीषिभिः । अक्कया द्रविणलुब्धया यथा, स्पष्टदत्तमजनिष्ट निष्फलम् ॥ ६४ ॥ पदच्छेदः - भावपात्र रहितम् फलप्रदम् न एव दानम् उदितम् मनीषिभिः प्रक्कया द्रविणलुब्धया यथा, स्पष्टदत्तम् अजनिष्ट निष्फलम् । अन्वयः - मनीषिभिः भावपात्ररहितं दानम् फलप्रदं नैव उदितम् यथा द्रविणलुब्धया अवकया स्पष्टदत्तं निष्फलम् अजनिष्ट | शब्दार्थ : - मनीषिभिः = विद्वानों के द्वारा, भावपात्ररहितं = भावपात्र से रहित, दानम् = दान, फलप्रदं =फल देने वाला, नव नहीं, उदितम् = कहा है । यथा = जैसे, द्रविणलुब्धया = धन की लोभी, अक्कया = इस नामकी स्त्री के द्वारा स्पष्टदत्तं स्पष्ट रूप से दिया गया, निष्फलम् = निकम्मा, अजनिष्ट = हुआ । श्लोकार्थ :- विद्वानों के द्वारा भावपात्ररहित दिया गया दान, फल देने वाला नहीं कहा गया है । जैसे धन में लोभी अक्का के द्वारा स्पष्ट रूप से दिया गया दान, निष्फल हो गया । संस्कृतानुवादः - विद्वद्भिः भावपात्ररहितं दानम्, फलप्रदं नैव कथितम् । यथा द्रविणलुब्धया अक्कया प्रगटरूपेण दत्तं दानं निष्फलं संजातम् ।। ६४ ।। ( ६५ )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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