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महामहोत्सवपूर्वकं विधिविधान - समन्विता प्रतिष्ठा सम्पादिता ।। ५७ ॥
* हिन्दी अनुवाद-प्रतीत, वर्तमान और भविष्यकालीन श्रीजिनेश्वरदेवों की (चौबीसी की) जन्म, जरा और मृत्यु आदि की असह्य वेदनाओं को शान्त करके परमसुख, परमशान्ति, अक्षय प्रानन्द को प्रदान करने वाली प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा शुभग्रह-नक्षत्र आदि की शास्त्रीय विशुद्ध गणना के अनुसार उच्चस्थिति तथा शुभ लग्न-मुहूर्तादि में महामहोत्सवपूजन सहित विविध विधि-विधानपूर्वक सम्पादित की ।। ५७ ।।
[ ५८ ] । मूलश्लोकःविमुच्यान्यत् सर्वं जिनवर - पदाम्भोजरसिकः , त्रिकालं सद्भक्त्या स्तवनप्रमुखश्चन्दनवरैः । जलै - दोपै - धूपैः शुभकुसुम-नैवेद्य-फलकैः , जिनेन्द्राणां चक्रेऽक्षतप्रवरैः पूजनमहो ! ॥ ५८ ॥
+ संस्कृतभावार्थः-श्रीजिनेश्वर - विभोः चरणकमलानुरागी चक्री भरतोऽन्यत् सर्वं राजकीयकार्य सचिवेषु निक्षिप्य जिनस्तवनप्रमुखैः स्तुति-नृत्य-गीतगान
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