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________________ जन, भावपूजा के अधिकारी नहीं हैं, वे द्रव्यपूजा से मूर्ति - प्रतिमा में प्रारोपित मूर्तिमान् श्रीजिनेश्वरदेव की पूजा, साहित्यिक - सरस-रस-छन्द - अलंकारों से समुल्लसित स्तुतिस्तवनों, भजनों, गीतिकाओं से तथा द्रव्य-संसाधनों से करते हुए अभिलषित फल एवं परमशान्ति को प्राप्त करते हैं । विमलविचारक निष्परिग्रही साधु महात्मा श्रीजिनेश्वरदेव के नित्यदर्शन तथा भावपूजन करके आत्मशुद्धि प्राप्त करते हैं ।। २६ ।। [ ३० ] ० मूलश्लोक: भव्यो यां दृष्ट्वा व्रजति सहसा भव्यपदवीं, सुभव्यो द्राग् भूत्वा विदलयति मोहौघनिगडम् । इदं वै प्रज्ञप्तौ चरमजिननाथेन कथितं ततो भक्तया कार्या जिनवरसपर्या भविजनः ॥ ३० ॥ , 5 संस्कृत भावार्थ:- पूज्यश्रीव्याख्याप्रज्ञप्तो अपरनाम श्रीभगवती सूत्रे चरम जिनेश्वरेण श्रीमन्महावीरस्वामितीर्थङ्करेण भगवता प्रोक्त- ये भावपूजाधिकारिणो न सन्ति तेषां कल्याणाय द्रव्यपूजा ( जिनाच ) कथिता । तत्रैव ये जिनमूर्ति- जिनप्रतिमां प्रति श्रद्धावन्तो न सन्ति तेषां विषयेऽपि कथितम् । विशेषजिज्ञासा चेत् --- ३६-०
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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