SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २८ ] - मूलश्लोकःतथैवान्या रम्या भविजनमरालैः परिचिता , विधीयन्ते भव्य - नवनवरसै - व्यनिकरैः । अपारे संसारे विततनिगमाब्धौ निगदिता , निबोधापेतानां शमसुखविधानाय सुगमा ॥ २८ ॥ संस्कृतभावार्थः-भावपूजेव रमणीया द्रव्यपूजाऽपि भव्यजनैः नीरक्षीरविवेकिभिः प्रादृता। सा च द्रव्यपूजा सांसारिक मनुष्यैः साहित्यशास्त्र वरिणतः सरसः प्रतिपलनवीनः रसैः, द्रव्यसमूहैश्च वितन्यते। एषा द्रव्यपूजापि न काल्पनिकी प्रशस्तेषु जैनागमेषु मान्येषु शास्त्रेषु प्रामाणिकरूपेण प्रोक्ता-संसारे सागरे निमज्जमानानां जनानां सज्ज्ञानरहितानां छद्मस्थानां कृते सुगमा सुलभा शमसुखविधात्री च वर्तते । * हिन्दी अनुवाद-सर्वोत्कृष्ट भावपूजा की भाँति ही द्रव्यपूजा भी नीरक्षीरविवेकी श्रीगणधर महाराजादि के द्वारा आदृत है। यह द्रव्यपूजा साहित्यशास्त्र में वर्णित विविध रस, छन्द, गीति तथा अनेक द्रव्यसंसाधनों से सम्पन्न होती है। यह द्रव्यपूजा भी कोई काल्पनिक नहीं है। क्योंकि श्रीजैन आगमों तथा प्रामाणिक शास्त्रों में इसके
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy