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* हिन्दी अनुवाद-जब तक मनुष्य त्रिलोकपूज्य श्रद्धेय श्रीजिनेन्द्रदेवों के चरणारविन्द की पूजा, अर्चना नहीं करते हैं तब तक वे आकाश में वायुवेग से पाहत मेघ की तरह इस संसार में मनुष्यादि चार गतियों में तथा . चौरासी लाख जीवायोनियों में भ्रमण करते रहते हैं । अतएव निर्मल ज्ञान वाले ऐसे भक्तजन प्रसार संसार संवर्धक कलुषित कर्मजाल का परित्याग करके, सर्वस्व प्रदान करने में समर्थ ऐसी श्रीजिनेश्वर भगवान की पूजा मन, वचन और काया से करते हैं ।। २३ ।।
[ २४ ] - मूलश्लोकःजलस्नानं कृत्वा जनयति विशुद्धि हि वपुषः , प्रभोरर्चा तद्वत् हरति मनसो मोहकलिलम् । विभोः पूजा द्वधा बुधजनमरालनिगदिता , विशुद्ध: सद्रव्यरमितसुख दैर्भावनिकरैः ॥ २४ ॥
संस्कृतभावार्थः-पौन:पुन्येन जलस्नानेन केवलं शारीरिकमलशुद्धिः भवितुमर्हति, न चाभ्यन्तरमलशोधनम्। अनादिकालिकस्यान्तःकरणसञ्चितमलसंशोधिका सर्वसमर्था प्रभोः पूर्जव विराजतेतराम् । अतः प्रभोः पूजा श्रेष्ठतमा । सैषा प्रभोः पूजा द्रव्य-भावभेदाभ्यां द्विधा