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के संस्कृतभावार्थः-श्रीतीर्थङ्कर-जिनेश्वराणां पञ्चकल्याणकानि भवन्ति । कल्याणकं नाम अन्वर्थतां भजते । पञ्चानामपि कल्याणकानां समये विश्वमात्रे शान्तिविराजते नरकस्थोऽपि जीवो, प्रभोर्जन्मनि कारागारस्थेव कष्टशून्यो भवति । नात्र मनागपि सन्देहस्यावकाशः । श्रीतीर्थंकरपरमात्मनः पञ्चकल्याणकानि चेत्थम्-च्यवनजन्म - दीक्षाग्रहण - चतुर्घातिकर्मक्षयरूपकेवलज्ञान - शेष - चतुरघातिकर्मक्षयरूपमोक्षरूपाणि । श्रीतीर्थङ्कर-जिनेश्वराणां पञ्चस्वपि कल्याणकेषु विश्वास्मिन् विश्वे सञ्जायते शान्तिः ।। १८ ।।
* हिन्दी अनुवाद-श्रीतीर्थंकर-जिनेश्वर भगवन्तों के पञ्चकल्याणक लोकविश्रुत हैं। "कल्याणं करोतीति कल्याणकम्" इस प्रकार व्युत्पत्ति के आधार पर 'कल्याण' पद सार्थक है। श्रोजिनेश्वरदेवों के पाँचों कल्याणकों के समय तीनों लोकों में दिव्यप्रकाश एवं सुखशान्ति प्रवृत्त होती है।
प्राचीन काल में राजकुमार के जन्म के समय कारागार (जेलखाना) में से कैदियों को मुक्त कर दिया जाता था, उसी प्रकार नारकी जीवों को भी अल्प समय के लिए कष्ट से मुक्ति तथा सुखोदय होता है। प्रभु के पञ्च