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॥ ॥ श्रीजिनशासनदेवाय नमः ॥ 5 ॥
तीर्थप्रभावक,
जैनधर्मदिवाकर, मरुधर देशोद्धारक, राजस्थानदीपक, शासनरत्न प्राचार्य श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी म. साहब के कर-कमलों में सादर समर्पित....
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अभिनन्दन-पत्रम्
आचार्य प्रवर !
लघुदेह में विपुल ज्ञान का सागर लिये हुए श्रापकी संयम - यात्रा स्वोपकार व परोपकार रूपी “तिन्नाणं तारयाणं" भाव की अभिव्यक्ति करती हुई जीवन सरिता के तटों को झकझोर कर कल्याण - पथ पर आगे बढ़ रही है ।
मुनिपुंगव !
आपका जीवन श्वेत परिधान की तरह है । आपकी संयमरूपी चादर सर्वत्र सफेद ही सफेद दिखाई दे रही है ।