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* हिन्दी अनुवाद - मन, वचन, काया से सदा श्रापको धारण करने वाले, आपकी विमल विशद कीर्ति को संसार में विस्तृत करने वाले भूलोक तथा स्वर्गलोक में आपको सादर पूजकर प्रसन्न मुखमुद्रावाले सच्चे धार्मिक लोग भी गिनती के ही हैं ।। १४३ ।।
[ १४४ ]
D मूलश्लोक:
परकृतमुपकारं अभिमतफललाभे तव पदजलजातं कामदं विकसितवदनाब्जाः सन्ति सन्तो
चेतसा
धारयन्तः,
त्वां सदा चिन्तयन्तः ।
कल्पयन्तः ,
महान्तः ।। १४४ ॥
5 संस्कृत भावार्थ:- अन्येषामुपकारं विधाय चेतसा धारयन्तः अभीष्टफललाभे सति त्वां सदैव चिन्तयन्तः । भवदीयचरणकमलं मनोवाञ्छितप्रदं कल्पयन्तः, विकसितवदनाः सन्तो महान्तः सन्ति ।। १४४ ॥
* हिन्दी अनुवाद - दूसरों की भलाई की भावना सदैव अपने चित्त में धारण करने वाले, अभिलषित फलप्राप्ति के समय भी आपका चिन्तन-मनन करने वाले, आपके चरणकमलों को मनोवांछित फलदाता मानकर, महान् सन्त बहुत से हैं ।। १४४ ।।
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