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________________ भूमि विहाय मनोहारिणीं मानससरोवरभूमि श्रयन्ते । उक्तञ्च 'रमते न मरालदयमानसं मानसं बिना' । * हिन्दी अनुवाद-(जिस प्रकार) वर्षाऋतु के प्रारम्भ में काले-काले जलपूर्ण बादलों के आकाशमण्डल पर छाने पर मनोहारी मानसप्रेमी हंस मान सरोवर को याद करके सामान्य भूमि को छोड़कर के 'मान सरोवर' के लिए उड़ान भरते हैं। क्योंकि-मराल का मन मानसरोवर के बिना प्रसन्न नहीं रहता है ।। ११७ ।। [ ११८ ] । मूलश्लोकःतथा विद्वद्वन्दाः परमसुखकन्दा द्विजवराः , निशान्ते विश्रान्ते विगततिमिरान्ते दिकमणौ । समुद्भूते पूते सुखयति सुकान्त्या त्रिभुवने , तदा त्वां ध्यायन्तस्तव पदमरन्दं प्रमुदिताः ॥ ११८ ॥ संस्कृतभावार्थः-मानसरमणा मराला इव विद्वान्सो द्विजवराः अन्धकारे विनष्टे प्रोद्भासिते च भास्करे भुवनदीपिते सति अनन्यया परमया श्रद्धया भक्त्या निष्ठया परममनोयोगेन च त्वां अर्हन्मूत्ति पूजयन्तः सेवमानाः ध्यायन्तश्वातिशयं सुखं लभन्ते । । --- १४६ ---
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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