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________________ संस्कृतभावार्थः-वनान्तरे सरसे सरोवरे विकसितं नवलममलं कमलं कस्य कौतुकाय आनन्दानुभूतये न सम्भवति ? तदीयां सुरभिमासाद्य पवनः सुवासितः सन् तद्गुणगौरवं दिगन्ते विस्तारयति । एवमेव तत्राकारणकरुणावरुणालयस्याहतो महिमा सन्मूत्तिमहत्त्वञ्च यद्यपि विश्वविदितं तथापि सुधियः सूरीश्वराः चतुर्षु दिक्षु विस्तारयन्ति । ___* हिन्दी अनुवाद-वन के सरस सरोवर में विकसित नवल विमल कमल भला किसे सुन्दर नहीं लगता, किन्तु उसकी सौरभ से सुरभित वायु कमलगुणगरिमा को दिशान्तरालों में संचारित करती है। ठीक इसी प्रकार अकारण करुणावरुणालय अरिहन्तदेव की महिमा यद्यपि विश्वविदित है, तथापि अहर्निश सुधीश्वर चारों दिशाओं में अर्हत् एवं अर्हत् प्रतिमा के महत्त्व को विस्तीर्ण करते हैं ।। ११४ ॥ [ ११५ ] ॥ मूलश्लोकःसुरा यद् वाञ्छन्ति प्ररिणहितधिया भोगमतुलं , विना यत्नात्तेभ्यः प्रवितरति सर्वं सुरतरुः । तथार्हन्ती मूत्तिः शमसुखसवित्री वसुमती , बुधा ध्यान्त्वेनाममितमहिमानं विपुलदाम् ॥ ११५ ॥ -०-१४३ ---
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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