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5 संस्कृत भावार्थ:- प्रभोः श्रीशान्तिनाथस्य स्नात्रस्य यत् परमपावनं भवभीतिहरं प्रक्षालितजलमासीत् । तत्तु मदना सौवर्णकलशे गृहीतवती । अमृतनिर्भरादपि अधिकसुखप्रदेन तेन स्नात्रजलेन सा पत्युः कुष्ठरोगेण वरिणतसकलमपि शरीरं प्रक्षालितवती । स्नात्रजलावसिश्वनेन महदाश्चर्यकरं वृत्तान्तं सञ्जातम् ।
* हिन्दी अनुवाद - लोकशान्तिप्रदाता श्रीशान्तिनाथ भगवान् के स्नात्र महापूजन - महोत्सव में प्रभु के प्रक्षाल के जल को श्रीसिद्धचक्र की सुन्दर प्राराधना करने वाली धर्मपरायणा मदना-मयणासुन्दरी ने परम श्रद्धा के साथ सुवर्णकलश में ग्रहण किया । वह प्रक्षाल का जल अमृत के निर्भर जल से भी अधिक सुखप्रद था । पूजोपरान्त उसने उस पावन जल को अपने पति श्रीपाल ( उम्बर राणा ) के गलित कुष्ठ पर सर्वत्र अवलेपित किया । अवलेपित करते ही एक महान् प्राश्चर्यकारी घटना हुई । वस्तुतः देवपूजा से क्या-क्या आश्चर्य सम्भव नहीं है ? ।। [ १०६ ]
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मूलश्लोक:
दिदीदे तत् कान्ती रतिपतिद्युतेश्चापि जयिनी, गिराऽवाच्यं सौख्यं पुनरविषयं चापि मनसः । जयारावश्चेदृक् समजनि दिगन्तं बधिरयन्, ग्रहो जैनो धर्मो जयति फलदो देवतरुवत् ॥ १०६ ॥
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