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दशिनां त्रिलोकीनाथानां मूर्तिपूजा विविधः प्रमाणैः संसिद्धा । दूरदशिभिः श्रुतकेवलिगणधरैः विद्वद्भिश्च सम्यक्तयाऽस्मिन् विषये प्रतिपादितं सत्यापितञ्च देवयजनम् । अविवेकिनो मूढा व्यर्थमेव विरोधयन्ति ।। १४ ॥
* हिन्दी अनुवाद-क्या मूर्तिपूजा केवल विद्वानों की कपोलकल्पित कथावार्ता है ? क्या आगमों एवं शास्त्रों में स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं ? क्या मूर्तिपूजा पूर्णतः असत्य है ? मैं तो यह स्वीकार करता हूँ कि देवपूजन प्रमाणों से सिद्ध तथा प्रादरास्पद है। इसमें तो किसी भी विद्वान् को विरोध नहीं करना चाहिए। त्रिकालदर्शी त्रिलोकीनाथ की मूर्तिपूजा अनेक प्रमाणों से सिद्ध है। श्रुतकेवली श्री गणधरादि ने भी सम्यक् प्रकार से देवपूजा को सत्यापित एवं प्रमाणित किया है। अविवेकीजन व्यर्थ में ही विरोध करते हैं । ६४ ।।
[ ६५ ] 0 मूलश्लोकःप्रमाराशिः कोशो निगममतसच्छब्दचयनाद् , प्रमाणं सिद्धान्तस्तदनुगमनात् सोऽपि च तथा । महाशास्त्रं भूयो विगलितमिदं तत्त्वरुचिभिः , प्रमाणं शास्त्रं ते जगति सततं सत्यभरितम् ॥ १५ ॥
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