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संस्कृत साहित्य, वस्तुतः भारतीय संस्कृति का साहित्य है । जैनाचार्यों ने भी समय-समय पर इस भाषा की श्रीसमृद्धि में अपना महत्त्वपूर्ण योग दिया है। संस्कृत साहित्य का 'शतक-साहित्य' बड़ा ही विशाल, सरस एवं हृदयस्पर्शी है । भक्त अपने हृदय के उद्गार अपने उपास्य के समक्ष प्रस्तुत करता है । अपनी मान्यताओं को प्रमाणित रूप में प्रस्तुत करने के लिए विविध प्रामाणिक प्रसङ्गों के सहारे वह उन्हें परिपुष्ट एवं सैद्धान्तिक सिद्ध करता है। 'मूर्तिपूजा' भी एक ऐसा ही सिद्धान्त है, ऐसी ही पद्धति है, जिसके विषय में अनेक कवियों, मनीषियों एवं विचारकों ने अपने विचार काव्यात्मक तथा सैद्धान्तिक रूप में प्रस्तुत किये हैं ।
__शतक साहित्य में भर्तृहरि के नीतिशतक शृंगारशतक एवं वैराग्यशतक अपनी अलग ही छाप रखते हैं। अमरूक शतक, भल्लट शतक, उपाध्याय श्री यशोविजय विरचित- 'प्रतिमाशतक', मयूर भट्ट का सूर्यशतक, बाण भट्ट का 'चण्डी शतक', आनन्दवर्धन का देवीशतक आचार्य समन्तभ्रद का जिनशतक (या जिनशतकालंकार) आदि का भी विशिष्ट महत्त्व है । प्राचार्य समन्तभ्रद के स्तोत्रों में हृदयपक्ष के साथ कलापक्ष का भी मंजुल समन्वय है। जम्बूकवि का 'जिनशतक' स्रग्धरा छन्द में
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