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________________ स्याद्वादबोधिनी-४३ समवाय के विनष्ट होने पर संसार के समस्त पदार्थों में समवाय विनष्ट होना चाहिए; क्योंकि समवाय आपके मत में एक तथा सर्वव्यापक है । वैशेषिक का यह कथन कि 'तन्तुषों में पट है', 'शाखाओं में वृक्ष है' यह भी लोकविरुद्ध है; क्योंकि पट में तन्तु हैं (कपड़े में धागे हैं) वृक्ष में शाखायें हैं-सर्व सामान्य को यही बोध होता है। अतः धर्म-धर्मी में समवाय सम्बन्ध की कल्पना ठीक नहीं है। साथ ही धर्म एवं धर्मी में अत्यन्त भेद मानना भी युक्तिसंगत नहीं है ।। ७ ।। [ ८ ] अथ सत्ताभिधानं पदार्थान्तरम्, प्रात्मनश्च व्यतिरिक्त ज्ञानाख्यं गुणम्, आत्म-विशेषगुणोच्छेदस्वरूपां च मुक्तिम्, अज्ञानादङ्गीकृतवतः परानुपहसन्नाह ॐ मूलश्लोकःसतामपि स्यात् क्वचिदेव सत्ता, चैतन्यमौपाधिकमात्मनोऽन्यत् । न संविदानन्दमयों च मुक्तिः, सुसूत्रमासूत्रित - मत्वदीयैः ॥८॥ * अन्वयः-सताम् अपि सत्ता क्वचित् एव । आत्मनः अन्यत् औपाधिकं चैतन्यं । मुक्तिः संविद् प्रानन्दमयी न (इति) अत्वदीयैः सुसूत्रम् अासूत्रितम् । च
SR No.002335
Book TitleSyadwad Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinottamvijay Gani
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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