________________
स्याद्वादबोधिनी-२७
श्रीजैन मान्यता के अनुसार अन्धकार पौद्गलिक है । वैशेषिकों के प्रति श्रीजैनदार्शनिकों का कहना है कि, यदि
आप दीपप्रभा को पौद्गलिक मानते हैं तो अन्धकार को पौद्गलिक मानने में क्या आपत्ति है ? अर्थात् सहर्ष आपको स्वीकार करना चाहिए। पदार्थ को एकान्त नित्य या एकान्त अनित्य मानने पर अर्थक्रियाकारिता भी घटित नहीं हो सकती। वस्तुतः, प्रापेक्षिक नित्य-अनित्य सिद्धान्त को अन्य दार्शनिक भी स्वीकार करते हैं, किन्तु स्याद्वाद-सिद्धान्त के नाम से नहीं। वैशेषिक भी पृथ्वी आदि पदार्थों को परमाणु रूप से नित्य तथा कार्यरूप से अनित्य मानते हैं। पातञ्जलयोगदर्शन में सभी वस्तुओं की नित्यानित्यमिता स्वीकार की गई है'धर्मी का परिणाम धर्म, लक्षण और अवस्था के भेद से तीन प्रकार का है।' - बौद्धदर्शन भी एक ही चित्रपट में नील-अनील धर्मों को मानता है।
इस प्रकार अनेकान्तवाद-स्याद्वाद सिद्धान्त सर्वमान्य सिद्धान्त है ॥ ५ ॥