SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्याद्वादबोधिनी-१८४ ताकिकाणां त्रयो भेदा-माद्या द्रव्याथिनो मताः।। सैद्धान्तिकानां चत्वारः, पर्यायार्थगताः परे ॥ [नयोपदेशः, श्लोकः १८] श्री विशेषावश्यक भाष्य में तो नयभेदों के सन्दर्भ में विशद विश्लेषण करते हुए कहा गया है कि-यदि पाँच नय स्वीकार करते हैं तो प्रत्येक नय के सौ-सौ भेद करने पर पांच सौ (५००) नयभेद होते हैं। यदि सात नय स्वीकार किये जाते हैं तो सात सौ (७००) भेद होते हैं। इस प्रकार यह सारांश है कि, वचनानुसार असंख्य नयभेद सम्भाव्य हैं ।। २८ ।। [२६ ] 'वैदिकमते' जम्बु-प्लक्ष-शाल्मलि - कुश-क्रौञ्च-शाकपुष्करा इति सप्तद्वीपाः, लवणेक्षुरासुसपिदधिदुग्धजलार्णवाः इति सप्तसमुद्राश्च । ___ 'बौद्धमते' जम्बूपूर्वविदेहावरगोदानीयोत्तर कुरव इति चतुर्दीपा सप्त सीताश्च । 'श्रीजैनमते' तु विश्वे असंख्याताः द्वीप-समुद्राः। तन्मात्रलोके परिमितानामेव जीवानां सम्भवात् संसारोच्छापत्तिरितिकृत्वा सर्वज्ञ-देवाधिदेव-श्रीजिनेश्वर - अहंभाषितं जीवानन्त्यवादं स्तुवन् प्राह
SR No.002335
Book TitleSyadwad Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinottamvijay Gani
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy