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स्याद्वादबोधिनी-१७१
प्रात्मा के बन्ध न होने के कारण मोक्ष भी सम्भव नहीं है, क्योंकि बन्ध का विनाश होकर ही 'मोक्ष' की स्थिति सम्भव है। बन्ध और मोक्ष भी सापेक्ष हैं। संसार में सापेक्ष व्यवहार देखा जाता है-गुरु-शिष्यः, पिता-पुत्रः इत्यादि । ठीक इसी प्रकार पहले बन्ध होता है तदनन्तर मोक्ष। बन्ध और मोक्ष-क्रमभावी हैं, समकाल भावी नहीं हैं। अतः आपको भी (परवादियों को) 'स्यात्' पद घटित लक्षण करना चाहिए। ऐसा करने पर दोष नहीं है, क्योंकि जहाँ-जहाँ कषाय है वहाँ-वहाँ बन्ध है, जैसे जीवात्मा। _. कषायरहित सिद्ध भगवान में यह स्थिति नहीं है । कारण के अभाव में कदापि कार्योत्पत्ति नहीं होती है । इस प्रकार अपेक्षावाद (स्याद्वाद) स्वीकार करना ही श्रेयस्कर है।
इतिदिक। यह दिग्दर्शन मात्र है। अर्थात् नित्य एकान्तवाद में जो दोष हैं उनका दिग्दर्शन किया गया है । इसी प्रकार अनित्य एकान्तवाद पक्ष में भी समझना चाहिए।
अनित्य एकान्तवाद में भी सुख-दुःखादि व्यवस्था सम्भव नहीं है, क्योंकि सर्वथारूप से विनष्ट होने वाले