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स्यादवादबोधिनी-१३१
* श्लोकार्थ-हे नाथ ! हे जिनेश्वर ! प्रत्येक क्षण में उत्पन्न-विनाश होने वाले पदार्थों को प्रत्यक्षतः स्थिर देखकर भी वातरोगी अथवा भूतबाधा से पीड़ित व्यक्ति के समान अनर्गल प्रलाप करने वाले लोग आपकी महनीय आज्ञा की अवमानना करते हैं ।
9 भावार्थ-बौद्धदार्शनिक प्रत्येक वस्तु को क्षणिक मानते हैं। उनकी मान्यता यह है कि प्रत्येक वस्तु उत्पत्ति के अनन्तर विनष्ट हो जाती है। किन्तु श्रीजैनदार्शनिक अनन्तज्ञान-दर्शन-चारित्रादिक के धारक यथार्थवेत्ता सर्वज्ञविभु श्री अरिहन्त भगवन्त-भाषित प्राज्ञा का पालन करते हुए पदार्थ की वास्तविक स्थिति उत्पादव्यय-ध्रौव्य के रूप में स्वीकार करते हैं। श्रीजैनधर्म के मतानुसार 'उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्त सत' अर्थात उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य ही पदार्थ का लक्षण है।
श्रीजैनदर्शन के अनुसार प्रत्येक वस्तु-पदार्थ में उत्पत्ति और विनाश होते रहते हैं। अतः पर्याय की अपेक्षा वस्तु-पदार्थ अनित्य है, तथा उत्पत्ति और विनाश के मध्य पदार्थ की स्थिरता भी होती है, जिसका ज्ञान हमें स्पष्ट रूप से होता ही रहता है। अतः द्रव्य की अपेक्षा प्रत्येक वस्तु-पदार्थ नित्य है ।