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६. देह का वर्ण : स्वर्ण (सोना) के समान वर्ण और
और रूप रूप आहारक देह रूप से भी अधिक । १०. प्राकृति : महान् तेजस्वी, महाप्रभावशाली । ११. ऊँचाई : सात हाथ । १२. संघयण : वज्रऋषभनाराच संघयण । १३. संस्थान : समचतुरस्र संस्थान । १४. व्यवसाय : अध्यापन कार्य एवं अनुष्ठान क्रिया। १५. ज्ञान : गृहस्थावस्था में चौदह विद्या के
पारगामी, दीक्षावस्था में सम्यग् मतिज्ञानादि चार ज्ञान के बाद पंचम
केवलज्ञान । १६. ज्ञान का : गृहस्थावस्था में 'सर्वज्ञोऽहम्' अर्थात्
अभिमान मैं सर्वज्ञ हूँ' ऐसा अभिमान । १७. संशय : 'जीव-यात्मा है कि नहीं' यह संशय
था। १८. शिष्यगण : ५०० । १६. गृहस्थावस्था : ५० वर्ष तक संसार में अर्थात्
गृहस्थावास में रहे। २०. दीक्षा : ५१ वें वर्ष में जैनधर्म की भागवती
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